इजराइल की मोसाद




हाल ही में मैंने एक पुस्तक पढ़ी. श्री पंकज कालूवाला लिखित मराठी पुस्तक इजराइल की मोसाद. परम मित्र पब्लिकेशन ने यह पुस्तक प्रकाशित किया है. यह एक काफी बड़ी किताब है. अपने रोजाना काम काज के साथ साथ इस पुस्तक को पढ़ने में मुझे काफी समय लग गया. लेकिन यह पुस्तक पूरी करना मेरे लिए जूनून बन गया. यह पुस्तक है ही ऐसी.

आप इसे पढ़ते है तो लगता है मनो सारा हमारे आखो के सामने हो रहा है. और फिर इजराइल की तो बात ही कुछ और है. जिन्हे पूरी दुनिया  में केवल शत्रुता मिली, जिन्हे ईसाई और अरब लोगो ने चुन चुन कर मर डाला वही इसरायली लोग कैसे अपने राष्ट्र और अपने लोगो का संरक्षण करते है ये हमे इस पुस्तक में पढ़ने मिलता है.

इजराइल के निर्माण के समय से ही मोसाद की स्थापना की गयी, मोसाद एक गुप्तचर संस्था है जिसका दुनिया में बड़ा नाम है - क्यों न हो इनके कारनामे है ही ऐसे.

हम भारतीय तो इस बारे में सोच भी नहीं सकते. कुछ हद तक मैं मोसाद के काम काज और तौर तरीके से बिलकुल सहमत नहीं हु लेकिन कुछ हद तक मैं उनके अपने राष्ट्र के प्रति समर्पण को देख कर बहोत ही प्रभावित होता हु.

इस पुस्तक में इजराइल की गुप्तचर संस्था मोसाद ने किये हुए अनेक कारनामो का पूरा वर्णन है. कैसे मोसाद ने हिटलर के बचे हुए अफसरों को दुनिया के कौने कौने से ढूंढ निकाला और फिर उन्हें पकड़ कर इजराइल ले गए - वहा उन पर मुकदमे चलाये और हिटलर द्वारा जर्मनी में यहुदिओं पर किये गए अत्याचार में शामिल होने के कारण सजाये भी दी. हमारे यहाँ तो युद्ध जितने के बाद भी नब्बे हजार पाकिस्तानी सैनिको को सही सलामत छोड़ दिया गया था और उन्होंने हमारे एक सरबजीत को भी नहीं छोड़ा - ये तो भला हो नए ज़माने की सरकार का जिन्होंने अभिनन्दन को वापिस छुड़ा लिया. इजराइल के मोसाद ने तो महायुद्ध के बाद भी कई वर्षो तक इंतज़ार किया लेकिन एक एक गुन्हेगार को पकड़ पकड़ कर सजा  दी - एक ऐसा ही वर्णन है इस पुस्तक में - कैसे यहूदियों को क्रुरतासे मरने वाला जर्मन अफसर दक्षिण अमेरिका में छिप कर बैठा था और उसे मोसाद के जासूसों ने कई वर्षो की मेहनत के बाद पकड़ लिया और इजराइल ले जा कर उस पर मुकदमा चलवा कर उसे सजा दी.

ओलंपिक्स में भी जब इजराइल के होनहार और युवा खिलाडियों की हत्या अरबोने करवाई थी तो मोसाद ने इस हत्या में शामिल अरबो को कई वर्ष बाद ढूंढ निकाला और सजा दी. चाहे सालो लग जाए, चाहे कई बार नाकामयाबी आये ये मोसाद वाले हार नहीं मानते और कोशिश करते रहते है.

इनके एक जासूस ने तो हद ही कर दी. जासूसी करने ये सीरिया में गया और वहा  उसने अपना ऐसा जाल बिछाया की वो वहा  का मिनिस्टर तक बन गया. एली कोहेन नाम का ये मोसाद का जासूस बाद में पकड़ा गया पर इसकी कहानी बहोत ही दिलचस्प है. उसकी हिम्मत की दाद देनी होगी. नेटफ्लिक्स पर एक सीरीज़ भी है इस एली कोहेन के जासूसी पर THE SPY नाम से. पुस्तक  पढ़ने के साथ साथ ये वाला सीरीज़ देखना भी बहोत दिलचस्प होगा.

मोसाद ने तो अपने शत्रु राष्ट्रों के अणु ऊर्जा प्रकल्प बनने से पहले ही उड़ा दिए या रुकवा दिए. उनके कठोर निर्णय, उनका action बहोत ही लाजवाब है - इतना बड़ा रिस्क शायद ही कोई और देश और उनकी जासूसी एजेंसीज लेती होंगी.

अपने यहूदी भाई बहनो को मोसाद दुनिया के हर कौने से सही सलामत इजराइल ले आता है - जहा भी वे मुसीबत में हो, संकट में हो तो मोसाद के एजेंट वहा पहुंच जाते है - और अपने जान पर खेल कर अपने लोगो को बचाते है.

पंकज कालूवाला  की यह किताब अवश्य पढ़नी चाहिए. सिखने के लिए तो बहोत कुछ है पर शायद उतना राष्ट्रप्रेम, उतनी हिम्मत और उतनी निर्दयता सब के पास नहीं हो सकती.



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