काला पानी





हम सभी लॉक डाउन में बंद है. ये सही समय है जानने का, सोचने का उनके बारे में जिन्हे पुरे जीवन के लिए लॉक डाउन किया गया था. वो भी एक आयलैंड पर जहा की हवा बीमार कर देती है और पानी काला पानी कहलाता है और सूरज? सूरज के तो उन्हें दर्शन ही नहीं होते थे कई कई महीनो तक.

आप सोचिये सगा बड़ा भाई भी उसी जेल में बंद है पर न तो उन्हें देख सकते है नहीं मिल सकते है और उन्हें कोई सन्देश भेजनेकी भी अनुमति नहीं. तब भी नहीं जब बड़ा भाई बहोत बीमार हो और उनका ऑपरेशन किया जा रहा हो. ये सब उनके साथ हुआ था.

आप सोचिये एक बंद कमरे में जहा रौशनी भी नहीं आती - वहा कई कई महीनो तक बंद करके रखा जाए, शौच भी उसी कमरेमे खुले में करना पड़े, खाने में मोटी कच्ची एक रोटी और उबली हुई घास की सब्जी, न किसीसे बात, न किसी जीवित प्राणी का दर्शन - ऐसे ही पड़े रहो एक बंद अँधेरे कमरेमे - ये उनके साथ हुआ था.

कच्ची घानी का तेल निकालने के लिए जो कोलू का उपयोग किया जाता था उसे एक या दो बैल जोड़े जाते थे - इन्हे उस कोलू को जोता जाता था उस बैल के जगह और सुबह पांच बजे से दोपहर तीन बजे तक कोलू गोल गोल घुमाकर  खींचना पड़ता था. ये काम कर कर के उनके पेट में हमेशा के लिए दर्द शुरू हो गया, वजन बहोत ही ज्यादा कम हो गया, खून के शौच होने लगे, कई बीमारिया जुड़ गयी - पर अंग्रेज़ो को दया नहीं आयी - वो इनके साथ ये करते रहे.

कई नेता है जिन्होंने आज़ादी की जंग में जेल में जाकर किताबे लिखी लेकिन इन्हे जेल के अंदर एक छोटा सा कागज ले जाने की भी अनुमति नहीं थी, एक छोटी पेंसिल तक इन्हे नहीं दी गयी, लेकिन इन्होने अपने नाखुनो से जेल की दीवारों पर अजरामर अलौकिक कविताये लिखी, इनकी कविताओं को लता मंगेशकर और उनके भाई बहनो ने अपनी सुरीली आवाज देकर अजरामर कर दिया है - हाँ वो आज़ादी के लड़ने वाले वीर तो थे ही पर एक अत्यंत प्रतिभाशाली कवी भी थे. उन्होंने श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के पुरे परिवार के त्याग पर कविता की, उन्होंने १८५७ के स्वतंत्रता क्रांति पर पुस्तक लिखी - तब तक तो अंग्रेज़ो ने यही भरम फैलाया था की १८५७ कि वो तो कुछ सैनिको की हड़ताल थी. जब की सैनिको के साथ  साथ झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई, तात्या टोपे, नानासाहेब पेशवे, कई रजवाड़े, कई किसान, आम नागरिक, शिक्षक, सभी उन सैनिको के साथ  जुड़े थे और अंग्रेज़ो के विरुद्ध लड़े थे, अगर हमारी एकता में कमी न होती अगर कुछ गद्दार गद्दारी न करते तो १८५७ में ही हम अंग्रेज़ो को भगा देते. और ये सच इन्होने ही सामने लाया.

हाँ हम स्वातन्त्र वीर विनायक दामोदर सावरकर की ही बात कर रहे है. 

दुःख होता है की सावरकर के बारे में पूरा जाने बिना - आधी अधूरी बातो पर उनका विरोध किया जाता है. उनके बारे में अनर्गल बाते की जाती है. जिनके पुरे परिवार ने अपना सर्वस्व देश के लिए समर्पित किया उनकी तस्वीर भारतीय संसद में लगाने के लिए आज़ादी के बाद कई दशक लग गए और जब उनकी तस्वीर लगी तब भी उसका जमकर विरोध किया गया.... ये एक चिकित्सा का  विषय है की जब सावरकर की तस्वीर लगी तब डाक्टर कलाम हमारे प्रेसिडेंट थे और कई लोगो के विरोध के बाद भी खुद डाक्टर कलाम ने सावरकर की तस्वीर का अनावरण कर उन्हें वंदन किया और उन्हें महान देशभक्त कहा.

जो यातनाये सावरकर ने सही उनकी एक परसेंट भी कोई नेता सह ले तो हम मानेंगे उन्हें सावरकरजी की आलोचना करने का  हक़ है.

भारत में प्लेग की महामारी ने आम जनता को त्राहिमाम कर छोड़ा था, और तब पुणे में प्लेग के मरीज ढूंढने के बहाने अँगरेज़ आम लोगो के घरों में घुस जाते - जूते पहनकर घरो में घुसते, लोगो को मरते, गालिया देते, महिलाओंके साथ अभद्र व्यवहार करते, कई आम नागरिको को अपमानास्पद और गुलामो जानवरो से भी गयी गुजरी सजाये देते. ये सब करने वाले मुख्य अंग्रेजी अफसर को पुणे के निवासी चाफेकर बन्धुओने मार डाला. और उन चाफेकर बंधुओको जब फांसी दी गयी तब सावरकर एक बालक थे - पूरी रात वो रोते रहे और अंत में उन्होंने अपने घर में मंदिर में स्थापत महिषासुरमर्दिनि  दुर्गा के सामने शपथ ली की में अपना जीवन राष्ट्र को समर्पित करूँगा. सौभाग्य से आगे उनकी पत्नी ने भी उनका साथ दिया - एक सम्पन्न और धनि परिवार से आकर भी उन्होंने अपने पति के स्वतन्त्रता संग्राम में शामिल होने के कारण अत्यंत गरीबी में दिन गुजारे  लेकिन कभी दुःख नहीं किया.

सावरकर ने कॉलेज में विदेशी वस्तुओंकी होली कर स्वदेशी को बढ़ावा देने के आंदोलन में सहभाग लिया और उसका नेतृत्व भी किया - उन्हें सजा के तौर पर कॉलेज से  निकाल दिया गया.

लेकिन चाहे वक्तृत्व हो, भाषण हो, कविता लेखन, निबंध या किताबे उन्होंने अपनी विद्वत्ता हर जगह साबित की. वे बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैंड गए ताकि अंग्रेज़ो का  कानून सिख कर उनसेही लड़ सके, वह इंडिया हाउस और अभिनव भारत जैसे क्रन्तिकारी समुदायों से वजुड़े. उन्हिकि  प्रेरणा से मदनलाल धींगरा ने उस अँगरेज़ अफसर को मार गिराया जिसने बंगाल के दो हिस्से किये और मुसलमानो के लिए अलग प्रभाग बनाया. उसी समय में सावरकर ने १८५७ कि असली इतिहास बताने वाली किताब लिखी, कई लेख और कविताये लिखी जो की कई सारे क्रांतिकारियोंके लिए प्रेरणा कि स्त्रोत बानी, सावरकर की इन्ही बातो से अंग्रेज़ो ने उन्हें सबसे खतरनाक मुल्ज़िम माना. कोई क्रन्तिकारी कोई एक कृत्य कर के फांसी पर चढ़ जाता पर सावरकर तो पुरे भारत को क्रांति की प्रेरणा दे रहे थे - लोग सचमुच अगर जाग जाते तो फिर अंग्रेज़ो का  भारत में रहना मुश्किल था इसलिए सावरकर को इंग्लैंड में बंदी बनाकर जहाज से भारत भेजा गया. सावरकर जानते थे की एक बार जेल में फसे तो फसे फिर ये चालाक अगंरेज हमे देश की आज़ादी के लिए कुछ नहीं करने देंगे. इसलिए  चलती जहाज से सावरकर समुन्दर में कूद गए और तैर  कर फ्रांस के किनारे पहुंच गए. दुर्भाग्य वश वहा  उन्हें कोई सही मदत नहीं मिली और ब्रिटिश सैनिकोंने उन्हें पीछा कर कर पकड़ लिया - ये एक और गुनाह उनके सर चढ़ गया. और इसलिए अंग्रेजो ने उन्हें दो उम्र कैद की सजा दी वो भी काला पानी मतलब अंदमान के आयलैंड पर.

सावरकर मुस्कुराये - उन्होंने कहा दो उम्र कैद? दो दो बार आजीवन कारावास? लगता है क्रिस्चियन अंग्रेज़ो को भी हिन्दू पुनर्जन्म की संकल्पना पर विश्वास हो गया है, इस जनम में मरने तक कारावास और फिर अगला कारावास अगले जनम के लिए.

अंदमान के कारावास में वहा का  जेलर एक आयरिश बारी था और उस बारी के चमचे कुछ मुस्लिम पठान सिपाही थे. बारी को भारतीयों से नफरत थी और आज़ादी के लिए लड़ने वालो से तो बहोत ज्यादा. और उन मुस्लिम सिपाहियोंको हिन्दू काफिरो से नफरत थी. उन सब ने मिलकर सावरकर और सारे आज़ादी के लिए लड़ने वाले हिन्दू सिख बौद्धों पर बहोत अत्याचार किये. वहा पुरे देश से और म्यांमार श्रीलंका से भी बंदी लाये गए थे. बारी और अँगरेज़ जहा उन सब पर क्रूर से क्रूर अत्याचार करते वही पठान सिपाही इस ताक में लगे रहते की कोई भोला भला हिन्दू काफिर उनके  जाल में फसे तो उसका धर्म परिवर्तन कराकर उसे मुसलमान बनाया जाये.

उस नरक सामान जेल में सावरकर ने दुगनी लड़ाई लड़ी - एक तरफ अंग्रेज़ो के खिलाफ उनके अन्याय पूर्ण बर्ताव के लिए तो दूसरी तरफ धरम के अंधे पठान मुस्लिम सिपाहीयो के जाल से.

कई बंदी तो बेचारे इतना क्रूर राक्षसी अन्याय सेह नहीं पाते और आत्महत्या कर लेते, तो कई को अँगरेज़ और पठान पागल होने तक मारते रहते, एक बंगाली नवयुवक को मुसलमान बनने से बचने के चक्कर में सावरकरजी ने पठान सिपाहियोसे हमेशा का  बैर मोल ले लिया - उन सिपाहियों ने सावरकर के बारे में बहोत गलत सलत अफ़वाए फैलाई, उन्हें परेशां करने के लिए हमेशा कोई न कोई काम किया.

लेकिन कुछ ही सालो में सावरकर ने अंदमान जेल के अंदर सारे ही आज़ादी के लिए लड़ने वालो के बिच अपने लिए आदर और सन्मान की जगह बनायीं, वे सारे उन्हें अपना नेता मानने लगे, इससे जेलर बारी और मुस्लिम सिपाही सावरकर पर ग़ुस्सा होते.

एक सिख स्वंतत्रता सेनानी जो वयस्क थे उनको अँगरेज़ और मुस्लिम सिपहीयोने मु से खून की उल्टिया होने तक मारा. सीखो को बाल धोने के लिए भी पानी नहीं दिया जाता. मुस्लिम सिपाही और गुन्हेगार बंदी एक होकर आज़ादी के सिपाहियोसे काम करवाते खुद नमाज़ के बहाने कई सारे काम टाल जाते और दुसरो को लालच देते की आओ मुसलमान बनो और इन कठिन कामो से बचो - हिन्दू सिख लड़को को वो गाय का मॉस खिला देते जिससे खुद हिन्दू सिख ही अपने लोगो का बहिष्कार कर देते उन्हें मुस्लमान कह देते. सावरकर ने अपने लोगो को समझाया और ऐसे बेचारे लड़को को वापिस हिन्दू धर्म में ले आये  - इस कारण कई मुसलमान सिपाही सावरकर को परेशान करते  एक ने तो उनके बड़े भाई पर जान लेवा हमला भी कर दिया था, एक ही जेल में रहकर भी सावरकर को अपने बड़े भाई से मिलने की अनुमति नहीं थी. उनके क्रन्तिकारी विचारो के कारण अंग्रेज़ो ने हमेशा सावरकर और उनके भाइयोंको बहोत खतरनाक शत्रु माना. अँगरेज़ जानते थे की अगर फांसी देते तो ये शहीद  कहलाते और कई लोग उनका अनुकरण करते और लोगो में डर पैदा करने के लिए सावरकर और उनके भाई को मौत से मुश्किल सजा दी गयी - काला पानी - उम्र कैद अंदमान के सेलुलर जेल में.

सावरकर, उनका परिवार और उनके मित्र सभी ये मानते थे  की जेल में उम्र कैद में रह कर तो जीवन व्यर्थ  ही जाता, उस जीवन का  न तो देश को कोई उपयोग होता न तो खुद को - और उस नरकसमान जेल में जो यातनाये झेलनी पड़ती वो तो  किसी भी मानव के लिए सहना मुश्किल था. सावरकर को तो अँगरेज़ और मुस्लिम सिपाही दोनोही दुःख दे रहे थे और इसलिए सावरकर ने उस जेल से छुटकारा पाने की कोशिशे की. अदालत में पुहार लगायी, अन्य आज़ादी के लड़ने वालो से मदत मांगी, अंग्रेज़ो के विरोधी अन्य देश के लोग भी सावरकर की कहानी, उनका त्याग  और दुःख की कहानी सुनकर उनके प्रति आदर दिखाते - सावरकर समज गए की उनको अगर राष्ट्र  समाज और धर्म के लिए कुछ करना है तो कुछ न कुछ कर कर जेल से छूटना होगा. वे कोशिशे करते रहे, जो अँगरेज़ खुद अन्याय कर रहे थे, जो अँगरेज़ निष्पाप भारतीय जनता को लूट रहे थे, एशिया और अफ्रीका के कई देशो को गुलामी की अमानवीय जंजीरो में दाल रहे थे - उन अंग्रेज़ो के साथ क्या सच्चाई और क्या नीतिमत्ता?

सावरकर ने ऐसा ही कुछ सोच समज कर शायद माफ़ी के लिए पत्र लिखे या फिर उन्हें बदनाम करने के लिए जेलर या सिपहीयोने उनके नाम से लिखे पता नहीं...... वैसे भी उनके माफ़ी के पत्र स्वीकार नहीं किये गए - अंग्रेज़ो ने उन्हें नहीं छोड़ा.

दस साल की सजा के बाद - सरदार वल्लभ भाई पटेल और बाल गंगाधर तिलक जैसे बड़े बड़े नेताओंके जोरदार दबाव के बाद अंग्रेज़ो को उन्हें अंदमान के काला पानी की सजा से मुक्त करना पड़ा. लेकिन उनपर शर्ते थी की वे राजनीति से दूर रहे.

तब तक तो उनकी तबियत लग बघ न के बराबर हो गयी थे, कई सारी बीमारिया हो गयी थी. वे थक चुके थे, नरकसमान कारावास ने उनके मन मष्तिक पर बहोत ही गहरा आघात कर दिया था. वे अकेला रहना चाहते थे. वे शारीरिक तौर पर कमजोर हो गए थे.

उनकर उर्वरित जीवन भी देश धर्म समाज को ही समर्पित था. उन्होंने छुआ छूत के खिलाफ आंदोलन किया, हिन्दुओमे एकता निर्माण करनेका प्रयास किया. मराठी में कई सारे नए शब्द निर्माण किये ताकि अंग्रेजी या उर्दू शब्दों का  उपयोग न करना पड़े. उन्होंने जो  कविताये, लेख, किताबे लिखी वो तो मराठी साहित्य में सबसे महान श्रेणी में मानी जाती है.

उनका जयोस्तुते जयोस्तुते  - यह गीत आज भी हर किसी को प्रेरणा देता है, स्फूर्ति देता है - उत्साह देता है.

उनका गीत 'ने मजसी ने परत मातृभूमिला....' एक महान काव्य है.

हरिजनों के लिए मंदिर खुलवाना, हिन्दू एकता के लिए पुरे भारत में भ्रमण करना ऐसे कई काम वो अपने वृद्धवस्था में करते रहे. देश स्वतन्त्र होने के बाद भी उन्हें वो सन्मान नहीं दिया गया जिसके वे हक़दार थे. असली त्याग और सेवा करनेवालों के साथ  पता नहीं क्यों इतना अन्याय हो जाता है.......

गांधीजी के दुखद वध के बाद - सावरकर जी को भी कैद किया गया, नाथूराम गोडसे जिसने गांधीजी को मारा था उसने साफ़ कहा था की सावरकर या अन्य किसी का  इससे कोई लेना देना नहीं फिर भी उन्हें  कैद किया गया - पर कोई भी सबुत न होने के कारण  उन्हें मुक्त किया गया. गांधीवध के बाद हुए दंगेमें  सावरकर का  घर जलाया गया और उनके भाई पर हमला भी हुआ. वो समय उन्होंने बड़ी मुश्किल से निकाला.

पूरी आयु देश के लिए देदी, पूरा परिवार देश की आज़ादी के लिए हर सुख को हर आनंद को त्याग कर गया... कितनी यातनाये सही फिर भी  अंत तक देश धर्म और समाज के लिए  कार्य करते रहे. हम कौन होते है इतने महान देशभक्त पर भला बुरा  कहने वाले...... हमे तो उनका वंदन करना चाहिए.

एक ऋषि के तरह उन्होंने अंत में अन्न जल का  त्याग कर अपने देह को भी त्याग दिया, अपना जीवित कार्य पूरा होने पर जीने की क्या आवश्यकता ऐसा कह कर अपने हर सुख संपत्ति का  त्याग करने वाले वीर सावरकर ने अपने प्राण भी त्याग दिए.

माझी जन्मठेप अर्थात मेरी उम्र कैद - यह उनका उपन्यास उनकी काला पानी की  सजा के दिनों के बारे में हमें सब कुछ बताता है. इसे पढ़ कर भी हम असहज हो जाते है तो सोचिए कैसे उन्होंने वहा इतने वर्ष व्यतीत किये  होंगे.

वीर सावरकर जैसे  कई महान वीरो की ही देन है की हम आज स्वंतंत्र है. हर मत, हर जाती, हर धर्म, हर विचारधारा, हर राजनैतिक पक्ष से ऊपर उठ कर हमे सावरकर जैसे  महान देश भक्तो का  आदर करना चाहिए, चाहे हर विचारो से हम सहमत हो न हो - वे निश्चित ही पुरे भारत के लिए वंदनीय है.

२८ मई उनका जन्मदिन  है और मै अपने आप को भाग्यशाली मानता हु की इसी तारीख को मैंने उनका मराठी उपन्यास मांझी जन्मठेप पढ़ कर पूरा किया.

वंदे मातरम    

इजराइल की मोसाद




हाल ही में मैंने एक पुस्तक पढ़ी. श्री पंकज कालूवाला लिखित मराठी पुस्तक इजराइल की मोसाद. परम मित्र पब्लिकेशन ने यह पुस्तक प्रकाशित किया है. यह एक काफी बड़ी किताब है. अपने रोजाना काम काज के साथ साथ इस पुस्तक को पढ़ने में मुझे काफी समय लग गया. लेकिन यह पुस्तक पूरी करना मेरे लिए जूनून बन गया. यह पुस्तक है ही ऐसी.

आप इसे पढ़ते है तो लगता है मनो सारा हमारे आखो के सामने हो रहा है. और फिर इजराइल की तो बात ही कुछ और है. जिन्हे पूरी दुनिया  में केवल शत्रुता मिली, जिन्हे ईसाई और अरब लोगो ने चुन चुन कर मर डाला वही इसरायली लोग कैसे अपने राष्ट्र और अपने लोगो का संरक्षण करते है ये हमे इस पुस्तक में पढ़ने मिलता है.

इजराइल के निर्माण के समय से ही मोसाद की स्थापना की गयी, मोसाद एक गुप्तचर संस्था है जिसका दुनिया में बड़ा नाम है - क्यों न हो इनके कारनामे है ही ऐसे.

हम भारतीय तो इस बारे में सोच भी नहीं सकते. कुछ हद तक मैं मोसाद के काम काज और तौर तरीके से बिलकुल सहमत नहीं हु लेकिन कुछ हद तक मैं उनके अपने राष्ट्र के प्रति समर्पण को देख कर बहोत ही प्रभावित होता हु.

इस पुस्तक में इजराइल की गुप्तचर संस्था मोसाद ने किये हुए अनेक कारनामो का पूरा वर्णन है. कैसे मोसाद ने हिटलर के बचे हुए अफसरों को दुनिया के कौने कौने से ढूंढ निकाला और फिर उन्हें पकड़ कर इजराइल ले गए - वहा उन पर मुकदमे चलाये और हिटलर द्वारा जर्मनी में यहुदिओं पर किये गए अत्याचार में शामिल होने के कारण सजाये भी दी. हमारे यहाँ तो युद्ध जितने के बाद भी नब्बे हजार पाकिस्तानी सैनिको को सही सलामत छोड़ दिया गया था और उन्होंने हमारे एक सरबजीत को भी नहीं छोड़ा - ये तो भला हो नए ज़माने की सरकार का जिन्होंने अभिनन्दन को वापिस छुड़ा लिया. इजराइल के मोसाद ने तो महायुद्ध के बाद भी कई वर्षो तक इंतज़ार किया लेकिन एक एक गुन्हेगार को पकड़ पकड़ कर सजा  दी - एक ऐसा ही वर्णन है इस पुस्तक में - कैसे यहूदियों को क्रुरतासे मरने वाला जर्मन अफसर दक्षिण अमेरिका में छिप कर बैठा था और उसे मोसाद के जासूसों ने कई वर्षो की मेहनत के बाद पकड़ लिया और इजराइल ले जा कर उस पर मुकदमा चलवा कर उसे सजा दी.

ओलंपिक्स में भी जब इजराइल के होनहार और युवा खिलाडियों की हत्या अरबोने करवाई थी तो मोसाद ने इस हत्या में शामिल अरबो को कई वर्ष बाद ढूंढ निकाला और सजा दी. चाहे सालो लग जाए, चाहे कई बार नाकामयाबी आये ये मोसाद वाले हार नहीं मानते और कोशिश करते रहते है.

इनके एक जासूस ने तो हद ही कर दी. जासूसी करने ये सीरिया में गया और वहा  उसने अपना ऐसा जाल बिछाया की वो वहा  का मिनिस्टर तक बन गया. एली कोहेन नाम का ये मोसाद का जासूस बाद में पकड़ा गया पर इसकी कहानी बहोत ही दिलचस्प है. उसकी हिम्मत की दाद देनी होगी. नेटफ्लिक्स पर एक सीरीज़ भी है इस एली कोहेन के जासूसी पर THE SPY नाम से. पुस्तक  पढ़ने के साथ साथ ये वाला सीरीज़ देखना भी बहोत दिलचस्प होगा.

मोसाद ने तो अपने शत्रु राष्ट्रों के अणु ऊर्जा प्रकल्प बनने से पहले ही उड़ा दिए या रुकवा दिए. उनके कठोर निर्णय, उनका action बहोत ही लाजवाब है - इतना बड़ा रिस्क शायद ही कोई और देश और उनकी जासूसी एजेंसीज लेती होंगी.

अपने यहूदी भाई बहनो को मोसाद दुनिया के हर कौने से सही सलामत इजराइल ले आता है - जहा भी वे मुसीबत में हो, संकट में हो तो मोसाद के एजेंट वहा पहुंच जाते है - और अपने जान पर खेल कर अपने लोगो को बचाते है.

पंकज कालूवाला  की यह किताब अवश्य पढ़नी चाहिए. सिखने के लिए तो बहोत कुछ है पर शायद उतना राष्ट्रप्रेम, उतनी हिम्मत और उतनी निर्दयता सब के पास नहीं हो सकती.



श्री रामानंद सागर जी का रामायण.......




राम, हमारे भारत के लाडले मर्यादा पुरुषोत्तम. देवोंके देव महादेव भी श्री विष्णु के राम अवतार की ही पूजा करते है, नित्य राम नाम का जाप करते है. जैसे श्री राम स्वयं शिवभक्त है वैसेही भोलेनाथ शिव शम्भो श्री राम के भक्त है - रामजी का त्याग, प्रेम, तपस्या, बल, उदारता, करुणा, मर्यादापुरुषोत्तम होना, एक उत्तम पुत्र, राजा, मित्र, पति, भाई, शिष्य होना - उनको महामानव बना देता है.

रामायण भारत के संस्कृति की अनमोल धरोहर है. ऐसा बंधुप्रेम, ऐसी पितृ सेवा और ऐसा त्यागमय राजसी जीवन पुरे विश्व में अनूठा है.

श्री रामानंद सागर जी का रामायण भले ही अस्सी के दशक का हो, भले ही तंत्रज्ञान के हिसाब से पुराना हो, भले ही आज कल के करोडो रुपयों के बजट और स्पेशल इफेक्ट्स उस में न हो - पर जो भाव, जो प्रेम, जो करुणा और भक्ति रस उसमे झलकता है - वो अनुपम है, पवित्र है, और इसीलिए हम भारतीयों को वह प्रिय है.

पुत्र का कर्त्तव्य, माता पिता का प्रेम, भाई भाई का प्रेम और त्याग, पत्नी का सतीत्व और सेवा, पति पत्नी का प्रेम और विश्वास, मित्र सेवक गुरु शिष्य प्रजा इन सबका एक दूसरे पे प्रति कर्त्तव्य निभाना, और हमेशा निति धर्म सत्य के लिए खुद के स्वार्थ को भूल कर कर्म करना बहोत ही प्रेरणादाई है.

चाहे वो केवट हो या शबरी, चाहे प्यारे हनुमानजी हो या फिर जटायु या सम्पाती, चाहे वो माता सीता की राक्षसी सखी त्रिजटा हो या फिर बिभीषन, चाहे वो मित्र निषाद राज हो या फिर उर्मिला, मांडवी, श्रुतिकीर्ति, इन सभी का भोलापन, निष्पाप प्रेम और त्याग रामायण को रामायण बनाता है.

हे राम, हे माँ जानकी, हे भैया लक्ष्मण, भरतशत्रुघ्न, अंजनेय हनुमानजी - हे गौरी शंकर - हमारे भारत को हमेशा महागाथा रामायण का स्मरण रहे, और धर्म, निति, प्रेम, त्याग और सनातन मूल्यों की ये धरोहर हमेशा समूचे विश्व का मार्गदर्शन करती रहे.

जय श्री राम  

क्या? आपने अभी तक तानाजी मूवी नहीं देखी?




तानाजी मूवी देखी आपने? इसे देखकर ख़ुशी और गर्व तो हुआ होगा ना? और अगर अभी तक आपने इस मूवी को नहीं देखा है, तो जरूर जाइए और इसे देखिये, अपने दोस्त रिश्तेदार सभी को कहिये देखने के लिए. क्यों एक मूवी के लिए इतना जोर देकर आपको कहा जा रहा है? ये देखिये इसके कारण...



“#ThanksMughals trends to protest ‘vilification’ after ‘Tanhaji; Trailer
Several users argued that Mughals were always vilified and that the Mughals were intrinsic members of Indian society.



तानाजी फिल्म के सिर्फ ट्रेलर रिलीज़ होते ही सारे सो कॉल्ड सेक्युलर, खान मार्किट गैंग, टुकड़े टुकड़े गैंग, एंटी इंडिया गैंग ये सारे अपना होश खो बैठे. और इन्होने तुरंत ही #थैंक्स मुग़ल्स ये हैशटैग ट्रेंड करना शुरू कर दिया. सिर्फ एक ट्रेलर देखर इन्हे इतनी जलन होने लगी. याद है ना चाहे जोधा-अकबर हो, या ताजमहल या फिर मुगले-आज़म , हम तो इन चीज़ो को आसानी से स्वीकार करते है और केवल मोरंजन के लिए देखते है. लेकिन इन्हे तानाजी एक आँख नहीं सेहन हो रहा है. इस मूवी का सिर्फ ट्रेलर देख कर ही इन्हे पेट दर्द शुरू हो गया था. जिन मुघलोंने हजारो मंदिर, गुरूद्वारे तोड़े, हिन्दू सीखो पर जज़िया कर याने जीने का टैक्स लगाया, सिख धर्मगुरुओकी निर्घृण हत्या की, हिन्दुओ का जबरन धर्म परिवर्तन कराया, जिन मुघलो के खिलाफ राजपूत, मराठा, सिख अपनी जान की बाजी लगाकर लढे उन मुघलोको धन्यवाद देने वाला थैंक्स मुग़ल ट्रेंड इन लोगोने शुरू किया सिर्फ तानाजी का ट्रेलर देख कर.
और अब जब की तानाजी मूवी रिलीज़ हो गयी है, अब तो पूछिए ही मत. ये मुघलो के गुलाम अपना आपा खो चुके है और कुछ भी बयान दे रहे है. देख लीजिये द क्विंट और द वायर में क्या लिखा है.



The Quint: Tanhaji, The Unsung Warrior is the latest in the slew of Islamophobic period films coming out of Bollywood in recent years


The Wire: ‘Tanhaji’ Review: Propaganda Weighs Down an Already Mediocre Film. Less of a feature film and more of a presentation to Modi and Amit Shah to realise their deeply egregious ideas about India. ‘Tanhaji’ tells a deeply divisive story when the country is on the brink of getting torn.     


द वायर ने तो हद ही कर दी है, ये कह रहे है की ये तानाजी मूवी मोदी और अमित शाह का सपना साकार कर रही है. ये कह रहे है की ये तानाजी मूवी देश को तोड़ने का काम कर रही है. इस का ये मतलब होता है की ये लोग यह स्वीकार ही नहीं करते की मुघलोंने भारत पर आक्रमण किया और यहाँ के लोगो पर अत्याचार किये. सत्य इतिहास सामने आया तो इन्हे तकलीफ हो रही है. जब की फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन का नाम लेकर एम् ऍफ़ हुसैन हमारे हिन्दू देवी देवताओंके अपमानजनक चित्र निकाल सकता है, यहाँ तक की सेक्सी दुर्गा नाम से फिल्म भी बनायीं जाती है, बॉलीवुड वाले हिंदुओंपर, हिन्दू रीतिरिवाज़ और त्योहारों पर जो मन मर्जी आये बयान दे सकते है पर जैसे ही मुग़लों का काला सच सामने आया इन्हे आपसी भाईचारा याद आया और ये एकता की दुहाई देने लगे.

असल बात तो यह है की अफगान, तुर्क, मंगोल से आये आक्रमण कारी मुघलो को ये लोग अपना मानते है. इन लोगो को तो तानाजी मूवी के 'माय भवानी' गाने से भी नफरत है. ये चाहते है क्रूरकर्मा औरंगज़ेब का घिनौना सच छुपा कर रखे और मुघलो के गुणगान गाते रहे. आज भी सीबीएससी के पाठ्यक्रम में हमे यही पढ़ाया जाता है की अकबर कितना महान था. भाजपा सरकार भी इसे नहीं बदल सकती क्युकी फिर उनपर भगवाकरण का आरोप जो लग जाएगा.


इसीलिए हमे तानाजी मूवी देखनी ही चाहिए और दुसरो को भी इसे देखने के लिए आग्रह करना चाहिए. ऐसा करने से और कई कलाकार ऐसी मूवी तैयार करने के लिए प्रोत्साहित होंगे. हर तरह के लोगो को, हर उम्र के देखने वालो को, समाज के हर स्तर से आये लोगो को एकसाथ एक ही मूवी पसंद आये ये बहोत मुश्किल है पर इन सब का खयाल रखते हुए बनाने वालो ने तानाजी मूवी में एक बहोत ही अच्छा तालमेल जमाया है - और हर वर्ग के देखने वालों को ये मूवी पैसा वसूल और दाम दुगना वाला एहसास देती है - और यही इस मूवी के निर्माताओं की बहोत बड़ी उपलब्धि है.

इस में एक डायलॉग ऐसा था "शिवजी महाराज की तलवार औरतो के घूँघट और ब्राह्मणो के जनीव की रक्षा करती है" और ये ऐतिहासिक सत्य भी है. शिवजी महाराज के पराक्रम के कारण उस ज़माने में मुघलो के अत्याचार से हिन्दू जनता की इज्जत, प्राण, धर्म और संपत्ति की रक्षा हुई थी. लेकिन बाद में यह डायलॉग चेंज करवाया गया, जनीव का उच्चार भी निकाल दिया गया.... कोई बात नहीं, फिर भी इस मूवी के अनेक डायलॉग ऐसे है जो शानदार है और हमे सत्य की याद दिलाते है.  इन्हे सुनकर जोश का माहौल निर्माण होता है, वीरश्री जागृत होती है.


ये दुःख की बात है की आज भी मुघलो के गुलामो की हमारे देश में कमी नहीं है. ब्रिटिश सत्ता के हैंगओवर में जीने वाले भी बहोत लोग आज भी हमारे बिच है. ब्रिटिश काल के शिक्षाविद मैकाले ने सोच समझकर ऐसी शिक्षा पद्धति का निर्माण किया की भारत के लोग भारतीयत्व का, हिंदुत्व का विरोध करेंगे और आज मैकाले के छल को फल लगे नजर आते है. इन लोगो को हर उस चीज़ से नफरत है जिस से भारतीयत्व की महानता, हिंदुत्व की महानता का प्रमाण मिले. तानाजी इसी महानता का बखान करती है.और इसीलिए ये हमारा कर्त्तव्य है की हम तानाजी देखे, जरूर देखे. चाहे सरकार इसे ट्रक्स फ्री करे या ना करे.


काय? तुम्ही अजून 'तानाजी' नाही बघितला?




'तानाजी' बघितला का हो तुम्ही? बघताना अभिमान, आनंद वाटलाच असेल नाही का? आणि नसेल बघितला अजून तर लगेच जा आणि बघा, तुमच्या जवळच्या सगळ्यांनाच बघायला सांगा. का? एका सिनेमा साठी इतकं भावुक का व्हायचंमग हे बघा….



“#ThanksMughals trends to protest ‘vilification’ after ‘Tanhaji; Trailer
Several users argued that Mughals were always vilified and that the Mughals were intrinsic members of Indian society.

तानाजी चा ट्रेलर आल्यावर लगेच सो कॉल्ड सेक्युलर, खान मार्केट गॅंग, तुकडे तुकडे गॅंग, अँटी इंडिया गॅंग सगळेच चवताळून उठले आणि त्यांनी #थँक्स मुघल हा हॅशटॅग ट्रेंड सुरु केला, तानाजीच्या नुसत्या ट्रेलरनेच त्यांना किती अस्वस्थ केलं. आपण जोधा अकबर बघितला, आपण या पूर्वीही अनेक मुघलांचे गुणगान गाणारे सिनेमे बघितले ताजमहाल असो किंवा मुगले-आझम  आपण खेळकर पणे सगळं स्वीकारतो. पण या गॅंगला तानाजी बघवत नाहीये. तानाजीचा नुसता ट्रेलर बघून यांना पोटदुखी सुरु झाली. ज्या मुघलांनी हजारो मंदिर तोडले, हिंदूंवर झिझिया कर म्हणजे जगण्यासाठी द्यायचा कर लावला, शीख धर्मगुरूंची निर्घृण हत्या केली, करोडो हिंदूंचे धर्म परिवर्तन केले, ज्या मुघलांविरुद्ध मराठे, राजपूत, शीख सर्वस्व पणाला लावून लढले त्या मुघलांना धन्यवाद देणारा #थँक्स मुघल हा ट्रेंड या गॅंग ने सुरु केला, फक्त तानाजीचा ट्रेलर बघून.

आणि तानाजी सिनेमा प्रदर्शित झाल्यावर तर विचारूच नका. हि मुघलगुलाम मंडळी इतकी दुखावली आहेत कि तानाजी बघणाऱ्यांना वाटेल ते बोलत सुटली आहेत. हे बघा क्विन्ट आणि द वायर काय म्हणताहेत.


The Quint: Tanhaji, The Unsung Warrior is the latest in the slew of Islamophobic period films coming out of Bollywood in recent years


The Wire: ‘Tanhaji’ Review: Propaganda Weighs Down an Already Mediocre Film. Less of a feature film and more of a presentation to Modi and Amit Shah to realise their deeply egregious ideas about India. ‘Tanhaji’ tells a deeply divisive story when the country is on the brink of getting torn.     

द वायर ने तर कहरच केलाय, ते म्हणताहेत कि तानाजी हा सिनेमा मोदी आणि अमित शहांची स्वप्नपूर्ती आहे. ते म्हणताहेत कि तानाजी सिनेमा देशात दुफळी माजवण्यात हातभार लावतोय - म्हणजे मुघलांनी भारतीयांवर केलेले आक्रमणचा ह्यांना मान्य नाही, सत्य इतिहास स्वीकारण्यास यांची तयारी नाही. फ्रीडम ऑफ एक्स्प्रेशनच्या नावाखाली हे स्वतः वाटेल ते करणार - मग एम एफ हुसेन ने हिंदू देवतांची वाटेल तशी चित्र काढायची, अगदी सेक्सी दुर्गा नावाचा चित्रपट हि काढायचा, बॉलीवूड वाल्यानी हिंदू आणि हिंदूंच्या सण परंपरांवर वाट्टेल ते बोलायचं पण जरा मुघलांच सत्य बाहेर आलं कि हेच लोक मग सामाजिक सौहार्दाच्या गोष्टी सांगणार.

मुळात मुघलांनी बाहेरून येऊन भारतीयांवर अत्याचार केले हेच त्यांना मान्य नाही, त्यांचा तर अगदी माय भवानी गाण्यावर आक्षेप आहे, औरंगझेबाची क्रूर प्रतिमा त्यांना जगापासून लपवून ठेवायची आहे आणि त्याचे गोडवे गायचे आहेत, आजही सिबीएससी च्या अभ्यासक्रमात अकबर कसा महान होता हेच मुलांना शिकवले जाते, अगदी भाजप सरकार सुद्धा हा अभ्यासक्रम बदलू शकत नाही कारण मग भगवाकरण केल्याचे त्यांच्यावर आरोप होतील.

म्हणून आपण तानाजी सिनेमा बघितलाच पाहिजे आणि इतरांना तो बघण्यास सांगितले पाहिजे, एकतर त्यामुळे अशा चित्रपटांना मदत होईल आणि अधिकाधिक कलाकार असे चित्रपट काढतील. सर्व प्रकारच्या प्रेक्षकांना आवडेल असा चित्रपट काढणं म्हणजे तारेवरची कसरतच, सर्व स्तरातील लोकांना आवडेल - सर्व वयोगटातील लोकांना आवडेल असं काही निर्माण करायचं म्हणजे काही साधी गोष्ट नाही आणि हे तानाजी च्या निर्मात्यांना जमलं आहे, त्यांचं कौतुक करावं तेवढं थोडच. 

"शिवाजी महाराजांची तलवार स्त्रियांचे शील आणि ब्राम्हणांचे जानवे संरक्षित करते" असा एक डायलॉग होता ह्या सिनेमात , हे ऐतिहासिक सत्य आहे. श्री छत्रपती शिवाजी महाराजांमुळे हिंदूंच्या अब्रूचे, धर्माचे, प्राणाचे आणि संपत्तीचे रक्षण झाले हे सत्य आहे पण हा डायलॉग बदलावा लागला. जानव्याचा उल्लेख टाळण्यात आला. असो.... तरीही तानाजी चे संवाद अतिशय परिणाम कारक आहेत. सुंदर आहेत. जोश आणणारे आणि अभिमान वाटावा असेच आहेत.


दुर्दैवाने आजही भारतात मुघलगुलामांची कमी नाही, आजही ब्रिटिश सत्तेच्या हँगओव्हर मध्ये जगणारे अनेक आपल्या भारतात आहेतं, ब्रिटिश कालीन शिक्षण तज्ज्ञ मेकाले ने भारतीयांना भारतीयत्वा पासून तोडण्यासाठी जी शिक्षण पद्धती तयार केली त्याची फळं सगळी कडे दिसून येतात - तेच हे लोक ज्यांना भारतीयत्व नको आहे, हिंदुत्व नको आहे. जे जे या प्राचीन सनातन धर्माची महानता सिद्ध करतात त्या सगळ्यांशीच या लोकांना वैर आहे. आणि म्हणून आपण तानाजी बघितला पाहिजे. सरकार हा चित्रपट टॅक्स फ्री करो व ना करो.

The attacks on Rangoli, internet warrior and Happy Diwali!!! (रांगोळीवरील हल्ले, इंटरनेट योद्धा आणि दिवाळीच्या शुभेच्छा !!!)

(English translation is below, just scroll down)

(Though this is based on a true event, to maintain the privacy of the involved families, few details are changed).







आम्ही नऊ मजल्याच्या इमारतीत राहतो, प्रत्येक मजल्यावर चार फ्लॅट आहेत.

तळ मजल्यावर, एक कुटुंब राहते, दररोज सकाळी त्या घरातली गृहिणी आश्चर्यकारक रांगोळी काढण्यासाठी त्यांच्या फ्लॅटच्या मुख्य दरवाजाच्या समोर 15 ते 30 मिनिटे घालवते. 

हि रांगोळी अर्थातच रोज नवी असते आणि रोज साध्या पद्धतीने आणि पांढऱ्या रंगातच असते, फक्त एखादा सण असेल तर किंचित मोठी डिझाईन आणि इतर रंग वापरलेले असतात. अगदी कमी जागेत  त्या बाई छान रांगोळी काढतात.

पायर्‍यांपासून त्यांचा फ्लॅट अगदी लांब आहे म्हणून त्यांची रांगोळी इतरांसाठी कधीच अडथळा बनली नाही. इतर लोक  त्यांच्या  रांगोळीकडे न पाहताहि सहज पायऱ्या वापरू शकतात.

आमच्या बिल्डिंग मध्ये माझी आई आणि इतर काही स्त्रियाहि स्वतःच्या  घराच्या अंगणात रांगोळी काढतात, पण ही महिला एक उत्तम रांगोळी कलाकार आहे. त्यांच्या  डिझाईन्स, रंगांची निवड त्यांच्या  प्रत्येक रांगोळीला एक उत्कृष्ट कलाकृती बनवतात. बहुतेक सगळेच शेजारी पाजारी त्यांच्या रांगोळी कौशल्याचे कौतुक करतात आणि बर्‍याच स्त्रिया त्यांच्या रांगोळीचे फोटो नेहमी क्लिक करतात.

या दिवाळीत आमच्या इमारतीत काहीतरी वेगळच घडलं आणि त्याचा केंद्रबिंदू ह्या बाईंची रांगोळी असेल असं कधीही कुणालाही वाटलं नसेल.

मी दिवाळीच्या सुट्टीत घरीच होतो, सकाळी सकाळी मी किराणा सामान विकत घेण्यासाठी बाजारात गेलो आणि परत येताना मी पायऱ्या चढत होतो; तळ मजल्यावर मी त्या बाईंना एक अतिशय सुंदर रांगोळी काढताना पाहिल. मी त्या कलाकृतीचे कौतुक करण्यापासून स्वत: ला रोखू शकलो नाही.

मी त्यांना म्हणालो  “मावशी, तुमच्या रांगोळ्या काय अप्रतिम असतात हो, तुम्ही रांगोळी स्पर्धांमध्ये भाग घेतलाच पाहिजे. तूम्ही अजून मोठ्या डिझाईन्स का बनवत नाहीत? ”त्यावर त्या हसत म्हणाल्या, “थँक यु, पण आमची घरातली कामं काही कमी आहेत का? ती काही संपता संपत नाहीत,  मग मी मोठ्या रांगोळ्या कधी काढणार? आणि तसाही काही उपयोग नाहीये? .... आता दुपारचे सगळे दरवाजे बंद झाले कि एक आपल्याच बिल्डिंग मधला मुलगा येतो आणि जाणूनबुजून रांगोळी पुसतो. मी त्याला हे बर्‍याच वेळा करतांना पाहिले आहे परंतु त्याला रंगे  हात पकडला नाही, पण आज ना उद्या मी त्याला नक्की रंगे हात पकडेन, बघ तू”

मला आश्चर्य वाटले आणि धक्काहि बसला. “काय बोलताय मावशी? अशी छान कलाकृती नष्ट करणारा मुलगा कोण असेल? पालकांनी आपल्या मुलांना कसे वागावे हे शिकवले पाहिजे, रांगोळीने कुणाचे काय बिघडवले - आश्चर्य आहे? ”मी म्हणालो.

ती म्हणाली “मला काही कल्पना नाही. मी नेहमीच काळजी घेते की माझ्या रांगोळीचा कुणालाही अडथळा होणार नाही; कितीही मोह झाला तरी मोठी रांगोळी काढून रस्ता अडवत नाही ”

मी म्हणालो “मी सहमत आहे, असो... तुम्हाला दिवाळीच्या शुभेच्छा” माझी कधी मदत लागलीच  तर मला कळवा. ”

त्या हसून म्हणाल्या, “तुलाही दिवाळीच्या शुभेच्छा, आणि अनेक आशीर्वाद”.

मी घरी पोहोचलो, याबद्दल आई आणि बायकोला सांगितले. माझ्या आईने सांगितले की तिची रांगोळीदेखील बर्‍याचदा त्या मुलाने पुसली आहे परंतु तिला फक्त त्या बाईसाठीच वाईट वाटते कारण आईला वाटत कि त्या मावशींची रांगोळी हि जास्त भक्तिभावनेने केलेली असते आणि खूप परिश्रमहि घेतलेलं असतात. पण मी म्हणालो की रांगोळी कुणाचीही असो जर ती कुणाच्या रस्त्यात येत नसेल तर खोडसाळ पणे रांगोळी पुसण्याचा अधिकार कुणालाही नाही.

दुपारी जेवण संपल्यावर मी माझा मोबाईल बघत होतो आणि माझ्या घरचे टीव्ही वर काहीतरी  पहात होते. मला फेसबुकवर एक पोस्ट सापडली - ती पोस्ट केरळची होती - ती एका हिंदूंच्या घरची सीसीटीव्ही फुटेज होती, त्या बंगल्याच्या प्रवेशद्वाराजवळ एक सुंदर रांगोळी काढली गेली होती, अचानक मुलांचा एक गट आला, ते सर्वजण विशिष्ट टोप्या घातलेले होते आणि त्यांनी अगदी खुनशीपणे ती रांगोळी पुसली. ती फेसबुक पोस्ट एक सोपा प्रश्न विचारत होती - “हिंदू मुलांनी अन्य एखाद्या धर्माच्या कलाकृतीला असे केले असते तर किती निषेध केला गेला असता याचा अंदाज लावता येईल का, हेच जर हिंदू मुलांनी अगदी एकदाच आणि अगदी देशाच्या कानाकोपऱ्यातही केलं ना तर आख्या देशाला आणि सगळ्या हिंदूंना काय काय ऐकावं लागेल?” मी काही त्या पोस्ट ला लाईक वगैरे  केल नाही किंवा त्या पोस्टवर काही भाष्यहि केले नाही.

आणि मग आम्ही वरच्या मजल्यावरून मोठं मोठ्याने भांडण्याचा आवाज ऐकला. काय झालंय हे पाहण्यासाठी आम्ही सर्व तिथे धावलो. तळ मजल्यावरील त्या बाई तिसर्‍या मजल्यावरील एका बाईकडे तक्रार करीत होत्या की, दररोज त्यांचा मुलगा मुद्दाम रांगोळी पुसून टाकतो, आणि आज तिने त्या मुलाला रंगेहाथ पकडलाय. तिसर्‍या मजल्यावर राहणारी ती महिला इतर धर्मातील आहे जे दिवाळी साजरी करत नाहीत आणि आपल्या मुलाच्या या आगाऊ कृत्याबद्दल दिलगिरी व्यक्त करण्याऐवजी आणि स्वतःच्या मुलालाही असे वागू नये हे समजावून सांगण्याऐवजी - ती वरच्या मजल्या वरची बाई उद्धट पणे ओरडत होती कि तुम्ही घराच्या आत रांगोळी का काढत नाही, दारात का काढता? अंगणात रांगोळी बनविणे थांबवलेच पाहिजे.

हा वाद चालूच होता, त्या मुलाचे संपूर्ण कुटुंब खूपच आक्रमक होते आणि अखेरीस तळमजल्यावरील त्या बाई आणखी वाद घालू शकल्या नाहीत आणि अश्रू ढाळत राहिल्या. आम्ही सर्वांनी मध्यस्थी करण्याचा प्रयत्न केला परंतु त्या मुलाच्या कुटूंबाचा उद्धटपणा आणि आक्रमकता खूप होती ते काही समजावून घेण्याच्या मनस्थितीत नव्हते, तुम्ही घराबाहेर रांगोळी काढणे हेच कसे चुकीचे आहे हेच ते सांगत होते. अनेक वयोवृद्ध शेजार्‍यांच्या विनंतीनुसार आम्ही त्या रांगोळी काढणाऱ्या बाईंना परत तळ मजल्यावर तिच्या घरी घेऊन गेलो, आम्ही सर्व तिथे एकत्र जमलो आणि चर्चा केली की त्या मुलाच्या कुटूंबाशी वाद घालण्यात काही अर्थ नाही परंतु आपण रांगोळी काढणे काही थांबवू नये - उलट आपण सर्वांनीच एकमेकांच्या रांगोळीवर लक्ष ठेवून तो मुलगा परत असं करणार नाही हे पाहिलं पाहिजे.

जेव्हा मी घरी परत गेलो आणि पुन्हा फेसबुक चेक करत होतो. तीच पोस्ट पुन्हा दिसू लागली - ती फेसबुक पोस्ट एक सोपा प्रश्न विचारत होती - “हिंदू मुलांनी अन्य एखाद्या धर्माच्या कलाकृतीला असे केले असते तर किती निषेध केला गेला असता याचा अंदाज लावता येईल का, हेच जर हिंदू मुलांनी अगदी एकदाच आणि अगदी देशाच्या कानाकोपऱ्यातही केलं ना तर आख्या देशाला आणि सगळ्या हिंदूंना काय काय ऐकावं लागेल?” - या वेळी मात्र मी Like वर क्लिक केलंच, आणि मी देखील त्या पोस्टवर भाष्य केल / comment केली की “खोट्या पुरोगामी आणि एककल्ली नाटकी सहिष्णू गॅंग च्या खोटेपणाचा हिंदूंना वीट आला आहे” आणि काही मिनिटांतच इतर धर्मातील एका फेसबुक वापरकर्त्याने माझ्या टिप्पणीवर स्वतःची comment टाकली “आला आणखी एक हिंसक हिंदू इंटरनेट योध्या उगवला”- त्यावर पुन्हा मी काही प्रतिक्रिया व्यक्त केली नाही, कारण मला माहित आहे की मी हिंसक नाही, मी सर्व धर्मांचा आदर करतो आणि  पूर्वग्रह दूषित असणाऱ्या लोकांशी वाद घालण्यात काय अर्थ आहे?... मला हसू मात्र आलं, काय पण नाव मिळालं मला.... म्हणे इंटरनेट योद्धा......." असो हे नाव असुदे कि हे युद्ध दोन्हीही आमच्यावर लादलेलं आहे, आम्ही काही स्वेच्छेने घेतलेलं नाही......

मग मी त्याला smily सहित एक उत्तर दिलं दिवाळीच्या हार्दिक शुभेच्छा.... आणि हो आम्ही सगळेच आता छान छान रांगोळ्या काढतोय बरं का, अगदी रोज :)







The attacks on Rangoli, internet warrior and Happy Diwali!!!

(Though this is based on a true event, to maintain the privacy of the involved families, few details are changed).

We stay in a nine story building, on each floor there are four flats.

On the ground floor, there stays a family, each morning the lady of the house spends 15 to 30 minutes at the entry point of their flat’s main door to draw amazing Rangoli.

Depending on the day the size of Rangoli changes, normally it’s a small white color design occupying hardly one square foot area and if it’s any festival day then the design gets bigger up to 2 to 4 square feet area with beautiful colors added in it.

Their flat is little inside and away from the stairs so her Rangoli designs have never become obstacle for others, only those who are actually going to enter in her home will be actually closer to that Rangoli. Others can easily use stairs to go up without even looking at her Rangoli.

Even my mother and other few ladies draw Rangoli in their house courtyard, but this lady is an amazing artist. Her designs, selection of colors make each of her Rangoli a masterpiece. Entire neighborhood appreciates her Rangoli skills and many ladies always click photos of her Rangoli designs.

This Diwali something significant happened in our building…..

I was on Diwali vacation and was at home, early morning I went to market to buy some grocery items and on my return when I was climbing up the stairs; on the ground floor I saw that lady making an extraordinary Rangoli design. I could not stop myself from praising that artwork.

I told her “Masi (Aunty), it’s an extraordinary design, you must participate in Rangoli competitions. Why don’t you make even bigger designs?” on that she smiled and said “Thank you son but I have so much housework to do, so I can’t give more than 15 to 30 minutes for bigger Rangoli making, anyways what is the use?.... now a days in afternoon when every door is closed, a boy intentionally wipes Rangoli. I have seen him doing it few times but could not catch him red-handed, I am determined to catch him sooner or later.”

I was surprised and shocked. “What are you saying Masi? Who would be that boy who enjoys destroying such an artwork? Parents must teach their kids how to behave, after all Rangoli is such a beautiful & harmless artwork, what problem it could cause to someone?” I said.

She said “I have no idea. I always ensure that my Rangoli designs are not disturbing anyone’s path; I ensure that they are placed in corner. They only add the beauty and do not harm anyone.”

I said “I agree, do let me know if I can help, Happy Diwali”.

She smiled and said “Happy Diwali to you too son, bless you”.

I reached home, told my mother & wife about it. My mother said even her Rangoli is intentionally wiped by same boy many times but she feels bad only for that lady because that lady’s Rangoli is no less than a beautiful creation made out of devotion & a lot of hard work, where as my mother’s Rangoli designs are small and quick easy ones, I said that doesn’t give anyone right to just come and wipe them.

In afternoon we finished our lunch, I was checking my mobile phone and my family was watching television. I found a post on Facebook – post was from Kerala – it was CCTV footage of a Hindu house, a beautiful Rangoli was drawn at the entrance of that bungalow, suddenly a group of boys came, all wearing caps and they disgracefully wiped that Rangoli with their shoes. The act was intentional, cruel & was full with hatred. That Facebook post was asking a simple question – “Can you guess how much the protest would be if Hindu boys would have done this to some other religion’s artwork?” I did not click on like or did not make any comment on that post.

And then we heard loud noise from the upper floor. We all rushed there to see what went wrong. The lady from the ground floor apartment was complaining to the lady staying on the third floor that everyday her son has been deliberately destroying the Rangoli, today she caught the boy red-handed. The lady staying at the third floor is from other religion who do not celebrate Diwali and rather than apologizing for her son’s disgraceful act and rather than making her own son understand that he should not behave like that – that lady was arrogantly shouting on the other lady from the ground floor that why she can’t make Rangoli inside of her house? She must stop making Rangoli in the courtyard.

The argument was going on for quiet sometime, the entire family of that boy was very aggressive and eventually the lady from the ground floor was in tears as she could not argue with them anymore due to their abusive behavior. We all tried to intervene but the arrogance, aggressiveness of that boy’s family was too much to handle. As requested by many elderly neighbors we took that lady back to her home on the ground floor, we all gathered there and discussed that there is no point in arguing with that boy’s family but we must not stop making Rangoli – rather we all should keep making them and keep a watch, help each other to stay united and let no one destroy the Rangoli as well as the peace in our building.

When I went back home and was going through Facebook again. Same post reappeared - That Facebook post was asking a simple question – “can you guess how much the outrage would be if Hindu boys would have done this to some other religion’s art work?” – and I just clicked on the like button, I also commented on that post that “selective outrages, biasness of the liberal & secular gang is breaking the hearts of real secular Hindus – it is really upsetting” and within a few minutes a Facebook user from other religion than mine commented on my comment stating “here comes a Bhakta the violent Hindu nationalist, an internet warrior” – again I did not react, because I know I am not violent, I respect all religions and I understand that there is no point in arguing with those who have stubborn prejudice. Internet warrior – well both are forced on us aren’t they? This name as well as the war.....

Then I replied to him with a smily and a comment "Happy Diwali"
And yes we all are making rangolis each day.....

काला पानी

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